Mirza Ghalib Shayari In Hindi
Mirza Ghalib Shayari In Hindi - नई दिल्ली. मिर्ज़ा ग़ालिब यानी उर्दू अदब का वो नाम जिसके बिना शेर-ओ-शायरी की कहानी ना शुरू होती है और ना खत्म। आप जिन्हें मोहब्बत से ग़ालिब कहते हैं उनका असल नाम मिर्जा असद-उल्लाह बेग खान था। उनका जन्म आगरा में हुआ। उनके पिता के निधन के बाद चाचा ने उनका पालन पोषण किया। कहते हैं कि 11 साल की उम्र से ही मिर्ज़ा ग़ालिब ने शायरी शुरू कर दी और ख्याति फैलने लगी। अपनी शायरी में वो अपना नाम या मिर्ज़ा लिखते थे या ग़ालिब। लिहाजा, बाद में वो मिर्ज़ा ग़ालिब के नाम से ही मशहूर हो गए। मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर उनके बहुत बड़े कद्रदान हुए। खुद जफर भी शायरी किया करते थे। इसलिए दोनों की खूब बनती। लेकिन ये वो दौर था जब देश में मुगलिया सल्तनत अपने बुरे दौर से गुजर रही थी। एक वक्त ऐसा भी आया जब अंग्रेजी सत्ता के आगे मुगल सेना हार गई और इसके साथ ही शायरी का वो दौर भी काफी हद तक थम गया। बहरहाल, इस ग़ालिब ने जो लिखा वो आज तक इतिहास के पन्नों में दर्ज है।
Mirza Ghalib Shayari In Hindi - मुगल शासक बहादुर शाह जफर के दरबार में कवि थे। उनको उर्दू गजलों के लिए भी जाना जाता है। उन्हें नज़्म-उद-दौला और दबीर-उल-मुल्क का खिताब मिला था। इस लेख में हम आपको मिर्जा गालिब की 50 प्रसिद्ध शायरी के बारे में बताएंगे।
वो दौर सुनहरा था और ग़ालिब जो शेर कहते थे, उनके अपने मायने होते थे। 15 फरवरी को उनकी पुण्यतिथि होती है। ग़ालिब आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस दौर में हुआ करते थे। यहां हम आपको उनके कुछ बेहद मशहूर शेर दे रहे हैं। एक नजर डालिए और लुत्फ लीजिए इस शायरी का। कितने आसान तरीके से वो अपने जज्बात या कल्पनाओं को कागज पर उतार देते थे। वहीं आप दैनिक भास्कर पर मिर्ज़ा ग़ालिब कोट्स इमेजेज Mirza Ghalib Shayari In Hindi भी प्राप्त कर सकते है।
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Mirza Ghalib Shayari
दर्द हो दिल में तो दवा कीजे
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजे
हमको फ़रियाद करनी आती है
आप सुनते नहीं तो क्या कीजे
इन बुतों को ख़ुदा से क्या मतलब
तौबा तौबा ख़ुदा ख़ुदा कीजे
रंज उठाने से भी ख़ुशी होगी
पहले दिल दर्द आशना कीजे
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Mirza Ghalib Shayari |
ghalib shayari
अर्ज़-ए-शोख़ी निशात-ए-आलम है
हुस्न को और ख़ुदनुमा कीजे
दुश्मनी हो चुकी बक़द्र-ए-वफ़ा
अब हक़-ए-दोस्ती अदा कीजे
मौत आती नहीं कहीं, ग़ालिब
कब तक अफ़सोस जीस्त का कीजे
यूं हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं
कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते हैं
ghalib poetry
वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं!
कभी हम उमको, कभी अपने घर को देखते हैं
नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं
तेरे ज़वाहिरे तर्फ़े कुल को क्या देखें
हम औजे तअले लाल-ओ-गुहर को देखते हैं
आज फिर इस दिल में बेक़रारी है
सीना रोए ज़ख्म-ऐ-कारी है
galib ki shayari
फिर हुए नहीं गवाह-ऐ-इश्क़ तलब
अश्क़-बारी का हुक्म ज़ारी है
बे-खुदा , बे-सबब नहीं , ग़ालिब
कुछ तो है जिससे पर्दादारी है
दुःख दे कर सवाल करते हो
तुम भी ग़ालिब कमाल करते हो
देख कर पूछ लिया हाल मेरा
चलो कुछ तो ख्याल करते हो
ghalib quotes
शहर-ऐ-दिल में उदासियाँ कैसी
यह भी मुझसे सवाल करते हो
मरना चाहे तो मर नहीं सकते
तुम भी जिना मुहाल करते हो
अब किस किस की मिसाल दू मैं तुम को
हर सितम बे-मिसाल करते हो
मैं उन्हें छेड़ूँ और कुछ न कहें
चल निकलते जो में पिए होते
mirza ghalib quotes
क़हर हो या भला हो , जो कुछ हो
काश के तुम मेरे लिए होते
मेरी किस्मत में ग़म गर इतना था
दिल भी या रब कई दिए होते
आ ही जाता वो राह पर ‘ग़ालिब ’
कोई दिन और भी जिए होते
हर एक बात पे कहते हो तुम कि 'तू क्या है'
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है
mirza ghalib ki shayari
न शोले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा
कोई बताओ कि वो शोखे-तुंद-ख़ू क्या है
ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न तुमसे
वर्ना ख़ौफ़-ए-बद-आमोज़िए-अ़दू क्या है
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन
हमारी जेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है
जला है जिस्म जहाँ, दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू क्या है
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रगों में दौड़ने-फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका, तो फिर लहू क्या है
वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त अज़ीज़
सिवाए वादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू क्या है
पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो-चार
ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी
तो किस उमीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है
mirza ghalib shayari in hindi pdf
हुआ है शाह का मुसाहिब, फिरे है इतराता
वरना शहर में 'ग़ालिब; की आबरू क्या है
ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के
हम रहें यूँ तिश्ना-लब पैग़ाम के
ख़स्तगी का तुम से क्या शिकवा कि ये
हथकण्डे हैं चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम के
ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के
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रात पी ज़मज़म पे मय और सुब्ह-दम
धोए धब्बे जामा-ए-एहराम के
दिल को आँखों ने फँसाया क्या मगर
ये भी हल्क़े हैं तुम्हारे दाम के
शाह के है ग़ुस्ल-ए-सेह्हत की ख़बर
देखिए कब दिन फिरें हम्माम के
इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
mirza ghalib love shayari in hindi
आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तॆरी ज़ुल्फ कॆ सर होने तक
दाम हर मौज में है हल्का-ए-सदकामे-नहंग
देखे क्या गुजरती है कतरे पे गुहर होने तक
आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूं खून-ए-जिगर होने तक
हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको ख़बर होने तक
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परतवे-खुर से है शबनम को फ़ना की तालीम
में भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक
यक-नज़र बेश नहीं, फुर्सते-हस्ती गाफिल
गर्मी-ए-बज्म है इक रक्स-ए-शरर होने तक
गम-ए-हस्ती का 'असद' कैसे हो जुज-मर्ग-इलाज
शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक
इश्क़ मुझको नहीं, वहशत ही सही
मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही
ghalib romantic shayari
क़त्अ कीजे, न तअल्लुक़ हम से
कुछ नहीं है, तो अदावत ही सही
मेरे होने में है क्या रुसवाई
ऐ वो मजलिस नहीं, ख़ल्वत ही सही
हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने
ग़ैर को तुझसे मुहब्बत ही सही
हम कोई तर्के-वफ़ा करते हैं
ना सही इश्क़, मुसीबत ही सही
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हम भी तस्लीम की ख़ू डालेंगे
बेनियाज़ी तेरी आदत ही सही
यार से छेड़ चली जाए 'असद'
गर नहीं वस्ल तो हसरत ही सही
मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तेहाब में
काफ़िर हूँ गर न मिलती हो राहत अज़ाब में
कब से हूँ क्या बताऊँ जहान-ए-ख़राब में
शब हाए हिज्र को भी रखूँगा हिसाब में
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ता फिर न इंतिज़ार में नींद आए उम्र भर
आने का अहद कर गए आए जो ख़्वाब में
क़ासिद के आते आते ख़त एक और लिख रखूँ
मैं जानता हूँ वो जो लिखेंगे जवाब में
मुझ तक कब उनकी बज़्म में आता था दौर-ए-जाम
साक़ी ने कुछ मिला न दिया हो शराब में
लाखों लगाव एक चुराना निगाह का
लाखों बनाव एक बिगड़ना इताब में
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galib ki shero shayari
ग़ालिब छुटी शराब पर अब भी कभी कभी
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र-ओ-शब-ए-माहताब में
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी के हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उसकी गरदन पर
वो ख़ूँ जो चश्म ए तर से उम्र भर यूँ दमबदम निकले
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बेआबरू होकर तेरे कूंचे से हम निकले
mirza ghalib famous poetry
भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे क़ामत की दराज़ी का
अगर उस तुररा ए पुरपेचोख़म का पेचोख़म निकले
मगर लिखवाए कोई उसको ख़त तो हम से लिखवाए
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर क़लम निकले
हुई इस दौर में मनसूब मुझसे बादा आशामी
फिर आया वो ज़माना जो जहाँ में जामेजम निकले
हुई जिनसे तवक़्क़ो ख़स्तगी की दाद पाने की
वो हमसे भी ज़्यादा ख़स्ता ए तेग ए सितम निकले
ghalib sad shayari in hindi
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख के जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
कहाँ मैख़ाने का दरवाज़ा ग़ालिब और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था के हम निकले
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आये क्यों
रोएंगे हम हज़ार बार कोई हमें सताये क्यों
दैर नहीं, हरम नहीं, दर नहीं, आस्तां नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पे हम, ग़ैर हमें उठाये क्यों
mirza ghalib shayari in hindi books
जब वो जमाल-ए-दिलफ़रोज़, सूरते-मेह्रे-नीमरोज़
आप ही हो नज़ारा-सोज़, पर्दे में मुँह छिपाये क्यों
दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जांसितां, नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
तेरा ही अक्स-ए-रुख़ सही, सामने तेरे आये क्यों
क़ैदे-हयातो-बन्दे-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से निजात पाये क्यों
हुस्न और उसपे हुस्न-ज़न रह गई बुल्हवस की शर्म
अपने पे एतमाद है ग़ैर को आज़माये क्यों
ghalib shayari 2020
वां वो ग़ुरूर-ए-इज़्ज़-ओ-नाज़ यां ये हिजाब-ए-पास-वज़अ़
राह में हम मिलें कहाँ, बज़्म में वो बुलायें क्यों
हाँ वो नहीं ख़ुदापरस्त, जाओ वो बेवफ़ा सही
जिसको हो दीन-ओं-दिल अज़ीज़, उसकी गली में जाये क्यों
'ग़ालिब'-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन-से काम बन्द हैं
रोइए ज़ार-ज़ार क्या, कीजिए हाय-हाय क्यों
वो फ़िराक और वो विसाल कहाँ
को शब ओ रोज़ ओ माह ओ साल कहाँ
ghalib quotes 2020
फुर्सत-ए-कारोबार-ए-शौक किसे
ज़ौक-ए-नज़ारा-ए-ज़माल कहाँ
दिल तो दिल वो दिमाग भी ना रहा
शोर-ए-सौदा-ए-खत्त-ओ-खाल कहाँ
थी वो इक शख्स की तसव्वुर से
अब वो रानाई-ए-ख़याल कहाँ
ऐसा आसां नहीं लहू रोना
दिल में ताक़त जिगर में हाल कहाँ
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हमसे छूटा किमारखाना-ए-इश्क
वाँ जो जावे गिरह में माल कहाँ
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये बवाल कहाँ
मुज़महिल हो गए कवा ग़ालिब
वो अनासिर में एतिदाल कहाँ
बोसे में वो मुज़ाइक़ा न करे
पर मुझे ताक़ते सवाल कहा

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ghalib quotes on motivation

ये ना थी हमारी क़िस्मत के विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते, यही इंतजार होता
तेरे वादे पर जिये हम, तो ये जान झूठ जाना
के खुशी से मर ना जाते, अगर 'ऐतबार' होता
तेरी नाज़ुकी से जाना के बँधा था 'एहेद-ए-बोधा'
कभी तू ना तोड़ सकता, अगर उस्तुवार होता
कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीम कश को
ये खलिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता
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ये कहाँ की दोस्ती है के बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारासाज़ होता, कोई गम-गुसार होता
रग-ए-संग से टपकता, वो लहू की फिर ना थमता
जिसे गम समझ रहे हो, ये अगर शरार होता
ग़म अगरचे जान-गुलिस हैं , पे कहाँ बचें के दिल हैं
ग़म-ए-इश्क़ गर ना होता, ग़म-ए-रोज़गार होता
कहूँ किस से मैं के क्या हैं शब-ए-ग़म बुरी बला हैं
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता
Mirza Ghalib Shayari in Hindi 2 Lines On Life
हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यों ना गर्क-ए-दरिया
ना कभी जनाज़ा उठता, ना कहीं मज़ार होता
उसे कौन देख सकता के यगान हैं वो यक्ता
जो दूई की बू भी होती, तो कहीं दो चार होता
ये मसाइल-ए-तसव्वुफ़, ये तेरा बयान 'ग़ालिब'
तुझे हम वली समझते, जो ना बादा-ख्वार होता
आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूँ खून-ए-जिगर होने तक।
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